गणेश चतुर्थी

आधिकारिक नामगणेश चतुर्थी
अनुयायीहिन्दूभारतीय, भारतीय प्रवासी
प्रकारHindu
उत्सवदस दिन
समापनअनंत चतुर्दशी
तिथिभाद्रपद शुक्ल चतुर्थी




गणेश चतुर्थी हिन्दुओं का एक प्रमुख त्यौहार है। यह त्यौहार भारत के विभिन्न भागों में मनाया जाता है किन्तु महाराष्ट्र में बडी़ धूमधाम से मनाया जाता है। पुराणों के अनुसार इसी दिन गणेश का जन्म हुआ था।गणेश चतुर्थी पर हिन्दू भगवान गणेशजी की पूजा की जाती है। कई प्रमुख जगहों पर भगवान गणेश की बड़ी प्रतिमा स्थापित की जाती है। इस प्रतिमा का नो दिन तक पूजन किया जाता है। बड़ी संख्या में आस पास के लोग दर्शन करने पहुँचते है। नो दिन बाद गाजे बाजे से श्री गणेश प्रतिमा को किसी तालाब इत्यादि जल में विसर्जित किया जाता है।




गणेश उत्सव क्यों मनाते है


श्रस्टि के आरम्भ में जब यह प्रश्न उठा की प्रथम पूज्य किसे माना जाय ! तो देवता भगवान् शिव के पास पहुंचे ! तब शिव जी ने कहा संपूर्ण पृथ्वी की परिक्रमा जो सबसे पहले कर लेगा ! उसे ही प्रथम पूज्य माना जायगा !
इस प्रकार सभी देवता अपने-अपने वाहन में बैठ कर पृथ्वी की परिक्रमा करने निकल पड़े।चुकी गणेश भगवान् का वाहन चूहा है ! और उनका शरीर स्थूल है ! तो भगवान् गणेश कैसे परिक्रमा कर पाते !
तब भगवान् गणेश जी ने अपनी बुद्धि और चतुराई से ! अपने पिता भगवान् शिवऔर माता पार्वती की तीन परिक्रमा पूरी की और हाथ जोड़ कर खड़े हो गए !
तब भगवान् शिव ने कहा की तुमसे बड़ा और बुद्धिमान इस पूरे संसार में और कोई नहीं है ! माता और पिता की तीन परिक्रमा करने से तुमने तीनो लोको की परिक्रमा पूरी कर ली है ! और इसका पुण्य तुम्हे मिल गया जो पृथ्वी की परिक्रमा से भी बड़ा है।
इसलिए जो मनुष्य किसी भी कार्य को आरम्भ करने से पहले तुम्हारा पूजन करेगा ! उसे किसी भी प्रकार की कठनाईयो का सामना नहीं करना पड़ेगा।
बस तभी से भगवान् गणेश अग्र पूज्य हो गये ! और उनकी पूजा सभी देवी और देवताओ से पहले की जाने लगी ! और फिर भगवान् गणेश की पूजा के बाद बाकी सभी देवताओ की पूजा की जाती है।
इसलिए गणेश चतुर्थी में गणेश भगवान् की पूजा की जाती है ! गणेश चतुर्थी को मनाने वाले सभी श्रद्धालु ! इस दिन स्थापित की गयी भगवान् गणेश की प्रतिमा को ग्यारहवे दिन अनन्त चतुर्दशी के दिन विसर्जित करते है ! और इस प्रकार गणेश उत्सव का समापन किया जाता है।


कथा
शिवपुराणके अन्तर्गत रुद्रसंहिताके चतुर्थ (कुमार) खण्ड में यह वर्णन है कि माता पार्वती ने स्नान करने से पूर्व अपनी मैल से एक बालक को उत्पन्न करके उसे अपना द्वारपालबना दिया। शिवजी ने जब प्रवेश करना चाहा तब बालक ने उन्हें रोक दिया। इस पर शिवगणोंने बालक से भयंकर युद्ध किया परंतु संग्राम में उसे कोई पराजित नहीं कर सका। अन्ततोगत्वा भगवान शंकर ने क्रोधित होकर अपने त्रिशूल से उस बालक का सर काट दिया। इससे भगवती शिवा क्रुद्ध हो उठीं और उन्होंने प्रलय करने की ठान ली। भयभीत देवताओं ने देवर्षिनारद की सलाह पर जगदम्बा की स्तुति करके उन्हें शांत किया। शिवजी के निर्देश पर विष्णुजीउत्तर दिशा में सबसे पहले मिले जीव (हाथी) का सिर काटकर ले आए। मृत्युंजय रुद्र ने गज के उस मस्तक को बालक के धड पर रखकर उसे पुनर्जीवित कर दिया। माता पार्वती ने हर्षातिरेक से उस गजमुखबालक को अपने हृदय से लगा लिया और देवताओं में अग्रणी होने का आशीर्वाद दिया। ब्रह्मा, विष्णु, महेश ने उस बालक को सर्वाध्यक्ष घोषित करके अग्रपूज्यहोने का वरदान दिया। भगवान शंकर ने बालक से कहा-गिरिजानन्दन! विघ्न नाश करने में तेरा नाम सर्वोपरि होगा। तू सबका पूज्य बनकर मेरे समस्त गणों का अध्यक्ष हो जा। गणेश्वर!तू भाद्रपद मास के कृष्णपक्ष की चतुर्थी को चंद्रमा के उदित होने पर उत्पन्न हुआ है। इस तिथि में व्रत करने वाले के सभी विघ्नों का नाश हो जाएगा और उसे सब सिद्धियां प्राप्त होंगी। कृष्णपक्ष की चतुर्थी की रात्रि में चंद्रोदय के समय गणेश तुम्हारी पूजा करने के पश्चात् व्रती चंद्रमा को अ‌र्घ्यदेकर ब्राह्मण को मिष्ठान खिलाए। तदोपरांत स्वयं भी मीठा भोजन करे। वर्षपर्यन्तश्रीगणेश चतुर्थी का व्रत करने वाले की मनोकामना अवश्य पूर्ण होती है।


चंद्र दर्शन दोष से बचाव


प्रत्येक शुक्ल पक्ष चतुर्थी को चन्द्रदर्शन के पश्चात्‌ व्रती को आहार लेने का निर्देश है, इसके पूर्व नहीं। किंतु भाद्रपद शुक्ल पक्ष की चतुर्थी को रात्रि में चन्द्र-दर्शन (चन्द्रमा देखने को) निषिद्ध किया गया है।
जो व्यक्ति इस रात्रि को चन्द्रमा को देखते हैं उन्हें झूठा-कलंक प्राप्त होता है। ऐसा शास्त्रों का निर्देश है। यह अनुभूत भी है। इस गणेश चतुर्थी को चन्द्र-दर्शन करने वाले व्यक्तियों को उक्त परिणाम अनुभूत हुए, इसमें संशय नहीं है। यदि जाने-अनजाने में चन्द्रमा दिख भी जाए तो निम्न मंत्र का पाठ अवश्य कर लेना चाहिए-
'सिहः प्रसेनम्‌ अवधीत्‌, सिंहो जाम्बवता हतः। सुकुमारक मा रोदीस्तव ह्येष स्वमन्तकः॥'

व्रत
भाद्रपद-कृष्ण-चतुर्थी से प्रारंभ करके प्रत्येक मास के कृष्णपक्ष की चंद्रोदयव्यापिनीचतुर्थी के दिन व्रत करने पर विघ्नेश्वरगणेश प्रसन्न होकर समस्त विघ्न और संकट दूर कर देते हैं।



गणेश उत्सव 10 दिनों तक क्यों मनाते है
धार्मिक ग्रंथो के अनुशार जब वेदव्यास जी ने महाभारत की कथा भगवन गणेश जी को दश दिनों तक सुनाई थी ! तब उन्होंने अपने नेत्र बंद कर लिए थे ! और जब दस दिन बाद आँखे खोली तो पाया की भगवान् गणेश जी का तापमान बहुत अधिक हो गया था।
फिर उसी समय वेदव्यास जी निकट स्थित कुंड में स्नान करवाया था ! जिससे उनके शरीर का तापमान कम हुआ ! इसलिए गणपति स्थापना के अगले दस दिन तक गणेश जी की पूजा की जाती है ! और फिर ग्यारहवे भगवान् गणेश जी की प्रतिमा का विसर्जन कर दिया जाता है।
गणेश विसर्जन इस बात का भी प्रतीक है ! की यह शरीर मिटटी का बना है.और अंत में मिटटी में ही मिल जाना है।
अब जानते है की गणेश उत्सव कबसे मनाया जाता है ! यह उत्सव वैसे तो कई वर्षो से मनाया जा रहा है ! लेकिन संन 1893 से पूर्व यह केवल घरो तक ही सीमित था ! उस समय सामूहिक उत्सव नहीं मनाया जाता था ! और न ही बड़े पैमानों पर पंडालों में इस तरह मनाया जाता था !
सन 1893 में बाल गंगा धर तिलक ने ! अंग्रजो के विरुद्ध एक जुट करने के लिए एक पैमाने पर इस उत्सव का आयोजन किया ! जिसमे बड़े पैमाने पर लोगो ने बढ़ चढ़ कर हिस्सा लिया ! और इस प्रकार पूरे राष्ट्र में गणेश चतुर्थी मनाया जाने लगा।
बालगंगाधर तिलक ने यह आयोजन महाराष्ट्र में किया था ! इसलिए यह पर्व पूरे महाराष्ट्र में बढ़ चढ़ कर मनाया जाने लगा !तिलक उस समय स्वराज्य के लिए संघर्ष कर रहे थे !
और उन्हें एक ऐसा मंच चाहिए था जिसमे माध्यम से उनकी आवाज अधिक से अधिक लोगो तक पहुंचे ! और तब उन्होंने गणपति उत्सव का चयन किया और इसे एक भव्य रूप दिया ! जिसकी छवि आज तक पूरे महाराष्ट्र में देखने को मिलता है।

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